बेर्बेरिस वल्गेरिस के फायदे, प्रयोग विधि और सावधानियां, Berberis Vulgaris Uses in Hindi
आज हम एक होम्योपैथिक मेडिसिन बेर्बेरिस वल्गेरिस के प्रयोग (Berberis Vulgaris uses in Hindi) के बारे में बात करेंगे, जो बारबेरी नामक पौधे से बनती है। इस दवा को रोगी के लक्षण के अनुसार बहुत रोगों में दिया जाता है लेकिन शरीर में जब भी कोई पथरी होती है तो उसके अंदर इस मेडिसन का मैक्सिमम यूज किया जाता है। इस लेख में हम बेर्बेरिस वल्गेरिस के फायदे, प्रयोग विधि और सावधानियों के बारे में बात करेंगे।
हमारे शरीर में दो तरह की पथरी है जो सबसे ज्यादा बनती है।
पहली है किडनी स्टोन(Kidney stone) या रेनल स्टोन(Renal Stone) यानी कि गुर्दे कि पथरी जो किडनी के अंदर बनती है।
दूसरी तरह की पथरी जो हमारे शरीर में मुख्य रूप से पाई जाती है, गाल ब्लैडर स्टोन जो हमारे पित कि थैली में बनती है।
बर्बेरिस वल्गैरिस मेडिसन जो कि दोनों तरह की पथरी में यानी कि गालब्लेडर पित्त की थैली की पथरी और किडनी स्टोन यानि कि गुर्दे की पथरी इसके बहुत ही अच्छे रिजल्ट है।
होम्योपैथी के अंदर आपने देखा होगा कभी कभी एक ही डिजीज में हर पेशेंट के लिए अलग-अलग दवा और अलग-अलग मात्र का प्रयोग किया जाता है, उसी प्रकार एक होम्योपैथी मेडिसिन के अलग-अलग बहुत से प्रयोग है उसी प्रकार बलबेरी वल्गैरिस के लिए बहुत से प्रयोग है। आईये अब हम बर्बेरिस वल्गैरिस के लाभ (Berberis Vulgaris uses in Hindi) के बारे में जानते है :-
बेर्बेरिस वल्गेरिस के प्रयोग ( Berberis Vulgaris uses in Hindi)
Contents
मुख्य लाभ
अगर आप अपने डॉक्टर से परामर्श लेते हैं तो आपके रोग के लक्षण को देखते हैं और यह निश्चित करते कि बर्बेरिस वल्गैरिस से ही पथरी ठीक होगा या पथरी के लिए कोई दूसरी मेडिसन भी देनी होगी।
1. किडनी स्टोन को ठीक करता है
हमारे शरीर में दो गुर्दे होते हैं एक राइट साइड और एक लेफ्ट साइड में, तो किसी भी गुर्दे के अंदर या पूरी में यूरेनरी सिस्टम यानि युरेटर में, यूरेनरी बलेडर में, युरेथरा में कही भी पथरी बनती है तो उसको बोलचाल कि भाषा में गुर्दे की पथरी या किडनी स्टोन या रेनल स्टोन बोलते हैं।
किडनी स्टोन के लक्षण:-
1. आपको गुर्दे (किडनी) से दर्द शुरू होगा और यह रेडिएटिंग पेन होगा। मतलब यह दर्द बायीं किडनी या दाई किडनी से उठकर शरीर के अन्य भागो में होने लगेगा । यह दर्द एक जगह नहीं होगा यह चारो ओर फैलेगा । मतलब पुरे पेशाब के रास्ते ( यूरिनरी ट्रैक) में यह दर्द कही भी होने लगता है।
अर्थात
- आपके गुर्दे से दर्द उठकर धीरे-धीरे युरेटर में फिर उसके बाद यूरिनरी ब्लैडर फिर यह ग्रोइंग रिजन में पेन हो सकता है। आपकी यूरेथ्रा यानी पेशाब की नली में दर्द आ सकता है। अगर आप एक पुरुष है तो आपके अंडकोष में भी यह दर्द हो सकता है। यह दर्द जांघ तक जा सकता है। यानि यह एक जगह से दूसरी जगह फैलते जाता है ।
2. किडनी में पथरी होने कि वजह हेमाचुरिया (Hematuria) होने लगता है। हेमाचुरिया वह कंडीशन होती है जिसके अंदर आपको यूरिन में ब्लड आने लगता है। पेशाब या पेशाब के रास्ते से खून आने लगता है । पेशाब का रंग थोडा लाल होने लगता है। जब पथरी यूरिनरी ट्रैक में पथरी मूव होता है एक जगह से दूसरी जगह जाता है तो वेंस(Vains) में जगह जगह कट लग जाता है, जिसके कारण पेशाब में खून मिक्स होने लगता है।
3. पेशाब में जलन होने लगता है।
4. बार बार पेशाब करने कि जरुरत महसूस होने लगती है।
5. पेशाब कि नली में भी दर्द होने लगता है, जब आप पेशाब जाने थोडा समय देर कर देते है।
- अगर यह सब लक्षण है तो यहाँ Berberis Vulgaris का बहुत ही अच्छा प्रभाव होता है। आपको कैसी भी पथरी हो 2 mm से 16mm तक यह उसको ठीक करता है।
- बस आपको सारी दवाई समय समय पर लेनी होती है और डाइट प्लान का भी ध्यान रखना होता है। आपको रिजल्ट को लेकर धैर्य भी रखना पड़ेगा।
2. पित कि थैली के पथरी को ख़त्म करता है
- गालब्लेडर स्टोन हमारे शरीर के अंदर एक कॉमन कंडीशन है जो आजकल काफी पाई जाती है और उसमें बोलचाल कि भाषा में पित्त की थैली की पथरी भी कहा जाता है जो पित कि थैली हमारे लिवर के नीचे होती हैं।
- गाल ब्लैडर में जब पित का कंसंट्रेशन बढ़ जाता है और केमिकल कंपोजिशन जब सॉलिड स्ट्रक्चर में परिवर्तित होने लगते हैं तो उसको पथरी कहा जाता है।
पित कि थैली के लक्षण
- पित कि थैली के पास यानि कि गाल ब्लेडर रीजन से या पीठ के पीछे से दर्द उठता है और धीरे धीरे उसके चारो ओर फैलता है। अगर इस तरह के सिस्टम है और आपको गालब्लेडर स्टोन हो सकता है। इसकी वजह से गैस और पेट में दर्द भी होने लगता है।
दवा का प्रभाव
- इस तरह के लक्षण में इस दवा का बहुत ही अच्छा प्रभाव है।
- यह पित के फ्लो को बढ़ा देती है जिससे पित का जमाव नहीं होता इस कारण से पित कि थैली में केमिकल कम्पोजीशन सॉलिड स्ट्रक्चर (पथरी) का निर्माण नहीं होता है फिर धीरे पथरी टूट कर पित के साथ शरीर के बाहर आ जाती है ।
- अगर आप इसको अपने अपने डॉक्टर के गाइडेंस में यूज करते हो तो आपको इसके अंदर बहुत अच्छे रिजल्ट मिलते और बड़ी से बड़ी पथरी भी धीरे धीरे बिल्कुल ख़त्म हो जाती है।
- दोनों प्रकार कि पथरी के लिये आप इसके साथ R-18 Kidney and Bladder Drop का भी सेवन कर सकते है।
लक्षणों में तेजी से बदलाव
- स्थान और चरित्र के संबंध में दर्द में बदलाव – प्यास, प्यास न लगना, भूख न लगना आदि के साथ बारी-बारी से। शिरापरक प्रणाली पर जबरदस्ती कार्य करता है, जिससे पेल्विक उभार और बवासीर पैदा होता है।
- यकृत और आमवाती रोग, विशेष रूप से मूत्र संबंधी, रक्तस्रावी और मासिक धर्म संबंधी शिकायतों के साथ।
- पुराने गठिया और संधिवात गुर्दे के क्षेत्र में दर्द सबसे अधिक होता है; इसलिए इसका उपयोग गुर्दे और मूत्राशय संबंधी समस्याओं, पित्त-पथरी और मूत्राशय संबंधी सर्दी में किया जाता है। यह हेमट्यूरिया के साथ गुर्दे की सूजन का कारण बनता है।
- दर्द पूरे शरीर में महसूस हो सकता है, जो पीठ के छोटे हिस्से से शुरू होता है। यह पित्त के प्रवाह को बढ़ावा देकर लीवर पर भी प्रभाव डालता है।
- अक्सर मूत्र संबंधी गड़बड़ी के साथ गठिया संबंधी रोगों में इसकी आवश्यकता होती है। भटकना, दर्द बिखेरना। मांसल व्यक्तियों, अच्छे जिगर वाले लोगों पर अच्छा काम करता है, लेकिन कम सहनशीलता के साथ।
- रीढ़ की हड्डी में जलन. सभी बर्बेरिस दर्द फैलते हैं, दबाव से बदतर नहीं होते हैं, लेकिन विभिन्न दृष्टिकोणों में बदतर होते हैं, विशेष रूप से खड़े होने और सक्रिय व्यायाम से।
सिर
- निस्तेज, उदासीन, उदासीन। फूली हुई अनुभूति, ऐसा महसूस होना मानो बड़ा होता जा रहा हो। बेहोशी के दौरे के साथ चक्कर आना। ललाट सिरदर्द. पीठ और पिछले हिस्से में ठंडक । कर्ण-शष्कुल्ली में फटने जैसा दर्द और वात-संबंधी पथरी । पूरे सिर पर एक तंग टोपी के दबाव का अहसास।
- अगर रोगी आंखे नहीं खोलना चाहता है और वह धुप में निकलता है तो यह रोग सर दर्द और बढ़ने लगता है तो आप Gelsemium का प्रयोग कर सकते है
नाक
- सूखी; बायीं नासिका का तीव्र नजला । नासिका में रेंगना।
चेहरा
- पीला, रुग्णतापूर्ण। धँसे हुए गाल और आँखें, नीले घेरे के साथ।
मुँह
- चिपचिपापन महसूस होना। लार कम हो गई. रुई की तरह चिपचिपी, झागदार लार (नक्स मॉश)। जीभ जली हुई महसूस होती है, जीभ पर बुलबुले होते हैं।
पेट
- नाश्ते से पहले जी मिचलाना। पेट में जलन।
उदर
- पित्ताशय के क्षेत्र में टाँके; अधिक, दबाव, पेट तक बढ़े । कब्ज और पीले रंग के साथ पित्ताशय का नजला। गुर्दे के सामने सिलाई जैसा दर्द जो यकृत, प्लीहा, पेट, कमर, पौपार्ट लिगामेंट तक बढ़ता है। इलियम में गहराई तक चिपकना।
मल
- लगातार मल त्यागने की इच्छा होना। दस्त दर्द रहित, मिट्टी के रंग का, जलन वाला, गुदा और मूलाधार में जलन वाला। गुदा के चारों ओर फटना। एनो में फिस्टुला।
मूत्र
- जलनयुक्त दर्द। ऐसा महसूस होना मानो पेशाब करने के बाद कुछ पेशाब रह गया हो। गाढ़े बलगम और चमकदार-लाल, मैली तलछट के साथ मूत्र। गुर्दों में बुलबुले, पीड़ादायक अनुभूति । मूत्राशय क्षेत्र में दर्द. पेशाब करने पर जाँघों और कमर में दर्द होना। जल्दी पेशाब आना; पेशाब न करने पर मूत्रमार्ग में जलन होती है।
पुरुष
- शुक्राणु रज्जु और अंडकोष का स्नायुशूल। अंडकोष, प्रीप्यूस और अंडकोश में चुभन, जलन, चुभन ।
स्त्री
- मॉन्स वेनेरिस में चुभन वाली सिकुड़न, वैजिनिस्मस, योनि में संकुचन और कोमलता। योनि में जलन और दर्द। इच्छा कम हो गई, सहवास के दौरान दर्द काटने लगा। मासिक धर्म कम, भूरे रंग का बलगम, गुर्दे में दर्द और ठंड के साथ, जाँघों के नीचे दर्द। प्रदर, भूरे रंग का बलगम, दर्दनाक मूत्र संबंधी लक्षणों के साथ। अंडाशय और योनि का स्नायुशूल।
श्वसन
- आवाज बैठ जाना; स्वरयंत्र का पॉलीपस. छाती और हृदय क्षेत्र में टांके फटना।
पीठ
- गर्दन और पीठ में टाँके; बदतर, साँस लेना। गुर्दे के क्षेत्र में चिपका हुआ दर्द जो पेट के चारों ओर से कूल्हों और कमर तक फैल जाता है। स्तब्ध, चोटग्रस्त अनुभूति. गुर्दे से मूत्राशय तक टांके। फटना, अकड़न के साथ चिपक जाना, उठना मुश्किल हो जाना, कूल्हे, नसें, हाथ-पैर सुन्न हो जाना। लूम्बेगो (रस; टार्ट एम)।
- मेटाटार्सस और मेटाकार्पस में मोच आ जाती है। काठ क्षेत्र में ऑपरेशन के बाद दर्द; बार-बार पेशाब आने के साथ मूत्राशय में सर्कमफ्लेक्स इलियाक तंत्रिका के प्रवाह के बाद तेज दर्द के साथ दर्द।
बाह्यांग
- कंधों, भुजाओं, हाथों और अंगुलियों, टाँगों और पाँवों में आमवाती पक्षाघात संबंधी दर्द। उंगलियों के नाखूनों के नीचे स्नायुशूल, उंगलियों के जोड़ों में सूजन के साथ। जाँघों के बाहर ठंड का अहसास।
- एड़ियों में दर्द, मानो घाव हो गया हो। खड़े होने पर मेटाटार्सल हड्डियों के बीच कील की तरह सिलाई होना। कदम रखने पर पैरों की उंगलियों में दर्द। थोड़ी दूर चलने के बाद पैरों में अत्यधिक थकान और लंगड़ापन।
त्वचा
- चपटे मस्से। खुजली, जलन और जलन; खरोंचने से बदतर; बेहतर, ठंडे अनुप्रयोग। पूरे शरीर पर छोटी-छोटी फुंसियाँ। गुदा और हाथों का एक्जिमा। एक्जिमाटस सूजन के बाद परिचालित रंजकता।
ज्वर
- विभिन्न भागों में ठण्डक अनुभूति, मानो ठण्डे पानी के छींटे पड़े हों। पीठ के निचले हिस्से, कूल्हों और जांघों में गर्माहट।
घटना-बढ़ना ― गति से बढ़ना, खड़े रहने से। यह मूत्र संबंधी शिकायतें लाता है या बढ़ाता है।
अन्य लाभ (Another Benefits Of Berberis Vulgaris )
1 . फिस्टुला यानि कि भगंदर में यह दवा बहुत ही कारगर साबित होती है ।
2. सिर दर्द – जिसमे रोगी को लगता है कि उसका सिर बड़ा हो गया है या उसने सिर पर कोई कैप पहनी है जो बहुत ही सख्त रूप से उसके सिर को जकड़ा हुआ है हालाँकि उसने कोई कैप नहीं पहनी होती है
3. गठिया – सायटिका में होने वाला दर्द – इस प्रकार के रोग में दर्द का जगह बदलता रहता है एक जगह से दुसरे जगह ।
4. आँखों का दर्द – इस रोग में भी दर्द का जगह बदलता रहता है यह दर्द आँखों से होते हुए सिर के चारो तरफ फैलने लगता है।
5. किडनी में सुजन या अन्य कोई भी कारण जिससे रोगी को पेशाब करने में दिक्कत होती हो।
प्रयोग विधि पथरी के लिए (Berberis Vulgaris uses in Hindi )
Berberis vulgaris Q uses in hindi
अगर आपकी बीमारी बहुत दिनों से है तो आपको Berberis Vulgaris के मदर टिंचर अर्थात Berberis Vulgaris Q का प्रयोग कर सकते है, क्योकि असाध्य रोगों के इलाज में किसी भी दवा के मदर टिंचर का इस्तेमाल ज्यादा होता है।
अगर आप Berberis Vulgaris के मदर टिंचर यानि कि Berberis Vulgaris दवा पर अगर Q लिखा हुआ है तो उसे सुबह-दोपहर-शाम एक गलास हल्के गर्म में 10 से 20 बूंद दवा को डालकर अच्छे से मिलाकर पीना है। इस दवा को घोटने से पहले थोड़ी देर मुख मे रखने पर यह और ज्यादा लाभकारी होगा । इससे दवा आपके सलाइवा मतलब लार में अच्छे से मिल जाती है।
Berberis Vulgaris 30, या Berberis Vulgaris 200 –
इस दवा को सुबह दोपहर शाम 2-2 बूंद जीभ पर लेना चाहिए ।
सावधानियां :–
1 . ज्यादा मात्र में दवा का सेवन नहीं करना चाहिए।
2. दवा का सेवन ज्यादा दिन तक नहीं करना चाहिए।
3. अगर पथरी का साइज़ 12 MM से ज्यादा है तो चिकिसक से परमर्श जरुर करना चाहिए।
4. अगर बार बार पथरी बन रही है तो चिकिसक से परमर्श जरुर करना चाहिए।
5. इसके उपयोग के दौरान शराब का सेवन नहीं करना चाहिए।
6. गर्म और धुप से दवा को दूर रखे किसी ठंडी एवं सुखी जगह पर रखे ।
I am an experienced homeopathic doctor, dedicated to providing holistic patient care. I completed my Bachelor’s and Master’s degrees in Homeopathy, specializing in chronic disease treatment. I am an active member of homeopathic associations known for my compassionate approach to patient care.
Source:-
- Materia Medica by Adolf zur Lippe, The Materia Medica by Adolf zur Lippe was written in 1854.
- Materia Medica by William Boericke, The Materia Medica by William Boericke was written in 1901
Disclaimer :- Berberis Vulgaris uses in Hindi– इस लेख में बताई गयी औषधियों, विधियों, और तरीको के सत्यता कि पुष्टि jivanjio.com नहीं करता है, यह लेख बस जानकारी के लिए है।