Thuja 200 uses in Hindi
|

थूजा 200 के फायदे एवं प्रयोग, Thuja 200 uses in hindi

दोस्तों आज इस लेख ( thuja 200 uses in hindi) के माध्यम से हम थूजा मेडिसिन के प्रयोग, सेवन विधि, फायदे और इसके सेवन में क्या क्या सावधानिया बरतनी है, इसके बारे में रोगों एवं रोगियों के लक्षणों के आधार पर जानेगे। लेख थोडा लम्बा हो सकता है परन्तु इसमें आपको पूरी जानकारी मिलेगी

थूजा एक होमियोपैथिक दवा है जो Thuja Occidentalis नामक पौधे से बनती है। इस औषधि का प्रयोग मुख्य रूप से चर्म, रक्त,आमाशय, आंत, किडनी और मष्तिष्क से सम्बन्धी रोगों में किया जाता है, इसका सबसे ज्यादा प्रयोग शरीर में कही भी मांस बढ़ने पर (Unwanted Growth) जैसे मस्सा, गिलट, तिल, ट्यूमर, बवासीर के गांठ (मस्से ) इत्यादि में किया जाता है।

दोस्तों आपको एक बात ध्यान से समझना चाहिए कि कोई भी होमियोपैथिक दवा जो किसी एक पौधे या जड़ी बूटी से बनी हो अर्थात वह दवा जो एक ही नाम से सभी कम्पनी बनती है वह किसी भी एक विशिष्ट रोग के लिए रूप से स्पेशल नहीं बनी होती है वह अनेक रोगों में रोगी के लक्षण उसके हाव भाव एवं शारीरिक स्थिति के अनुसार उपयोग किया जाता है।

पहले हम रोगी के हाव-भाव एवं उसके लक्षण कि बात करेंगे, जिनपर यह दवा कारगर साबित होती है। फिर उसके बाद यह दवा किस किस रोग में फायदा करती है उसके बारे में जानेगे।

रोगी के हाव-भाव, शारीरिक स्थिति  एवं उसके लक्षण :-

Contents

  • मरीज को ऐसा लगता है कि उसके बगल मे कोई अजनबी व्यक्ति बैठा है। कभी उसे महसूस होता है कि उसकी आत्मा शरीर से निकल गई है, मानो शरीर, विशेषकर अंग, कांच के है और आसानी से टूट जाएंगे।
  • कभी ऐसा लगता है मानो कोई जीवित जानवर पेट में हो।
  • जब उसे भावनात्मक उतेजना होती है या संगीत सुनता है तो वह रोने और कापने लगता है । अति-उत्साहित होता है और छोटी-छोटी बातों पर आसानी से क्रोधित हो जाता है।
  • पढ़ने और लिखने में झूठ गलत भावों का उपयोग करता है। जल्दबाजी में बात करता है, और शब्दों को अपने अन्दर दबा देता है और सही से बोल नहीं पाता है।
  • वह विचारहीन रहता है और उसे भूलने की बीमारी हो जाती है।

अब हम शरीर के अंगो के लक्षणों एवं समस्याओ के अनुसार थूजा 200 के फायदे (thuja 200 uses in hindi) के बारे में जानेंगे

थूजा 200 के फायदे (Thuja 200 uses in Hindi)

मस्से, गिलट, गांठ, टयूमर इत्यादि को ख़त्म करता है

शरीर में कही भी गांठ बन रही है चाहे वह कैंसर वाली गांठ हो यह दवा उसको भी दूर करता है ।

शरीर पर कही भी मस्से हो जैसे होठ, आँख, गर्दन , जनन अंग इत्यादि इस दवा का प्रभाव हर जगह पड़ता है ।

ब्रेन, सिर या कान कही भी ट्यूमर है यह उसको ख़त्म करता है।

मल और गुदा से सम्बंधित विकृतियों को दूर करता है

  • दस्त हवा के बहुत शोर के साथ तथा पीला-पीला पानी जबरन बाहर निकलता है। यह सुबह (नाश्ते के बाद), या सुबह समय-समय पर दस्त आता है। यह हमेशा एक ही समय पर होता है।
  • मल तैलीय या चिकना होता है और मल के साथ खून भी आता है।
  • मल त्याग के दौरान गुदा का दर्दनाक संकुचन होता है और बवासीर के गांठ (मस्से ) सूज जाते है जिससे बैठने में दर्द अधिक होता है। मस्से को छूने पर दर्द होता है
  • मलाशय में कब्ज के साथ तेज दर्द होता और मल पीछे हट जाता है और बाहर नही निकल पाता है। मल का निर्वहन जबरन होता है और  गुड़गुड़ाहट की आवाज होती है।
  • गुदा और मूलाधार में घिनौना पसीना और बदबूदार पसीना निकलता है ।

मूत्र अंग कि बीमारियों को ख़त्म करता है

  • बार-बार पेशाब करने की इच्छा होती है तथा मूत्र का विपुल स्राव होता है यह विशेष रूप से शाम मे होता है । पेशाब करने के बाद टपकने की अनुभूति होती है।
  • पेशाब में झाग आता है और पेशाब पर झाग देर तक बना रहता है। मूत्रमार्ग में सूजन जाता है और मूत्र धारा फटी हुई और छोटी हो जाती है।
  • दर्द के साथ बार-बार पेशाब आता है और पेशाब करने इच्छा अचानक और तत्काल होती है, लेकिन नियंत्रित नहीं हो पति है।
  • मूत्राशय (और मलाशय) लकवाग्रस्त महसूस करता है, जिसमें बाहर निकालने की शक्ति नहीं होती है।
  • मूत्रमार्ग में जलन, काटने-खुजली, पेशाब में चीनी कि मात्र, खूनी मूत्र इत्यादि ये सब लक्षण सामान्य दिखते है ।

यौन रोगों में भी बहुत लाभकारी है

पुरुष से सम्बंधित रोग

  • मूत्रमार्ग (सूजाक) से पानीदार और प्रचुर स्राव
  • पेशाब करने की बार-बार और तत्काल इच्छा के साथ मूत्राशय की गर्दन के पास दर्द और जलन महसूस होना।
  • यौन अंग के चमड़ी और मुंड में सूजन हो जाता है तथा लिंग में दर्द होता है।
  • सनसनी मानो मूत्रमार्ग के माध्यम से एक बूंद बह रही हो।
  • जननांगों पर अधिक पसीना, शहद जैसी मीठी गंध।
  • S.T.D सेक्सुअल ट्रांसमिटेड डिजीज को भी दूर करता है।

औरत से सम्बंधित रोग

  • मासिक धर्म कम या मंद हो जाता है और मासिक धर्म से पहले अत्यधिक पसीना आने लगता है ।
  • अंडाशय शोथ; हर माहवारी के समय बायीं ओर अधिक कष्ट होता है। कभी कभी तीसरे महीने में गर्भपात के लक्षण भी दिखते है।
  • योनि बहुत संवेदनशील हो जाता है, विपुल ल्यूकोरिया होता जिसमे  घना-हरा डिस्चार्ज होने लगता है।
  • बाएं अंडाशय और बाएं वंक्षण क्षेत्र में गंभीर दर्द होता है।

सिर दर्द और सिर चक्कर में लाभकारी

  • रोगी को उसके सिर में किल धंसने जैसा दर्द होता है, और सिर के बायीं हिस्से में दर्द होता है।  आराम करने पर बदतर तथा पसीने के बाद बेहतर हो जाता है । खुली हवा में व्यायाम करने से, ऊपर की ओर देखने से और सिर को पीछे की ओर घुमाने से सिर दर्द दूर हो जाता है।
  • रोगी को आंखें बंद करने पर चक्कर आने लगता है और आँखे खोलते ही गायब हो जाता है या झुकने पर या ऊपर की ओर या बगल में देखने पर चक्कर आना बंद हो जाता है ।
  • खोपड़ी को छूने पर बहुत दर्द होता है। मरीज चाहता है कि उसके  सिर (और चेहरा) को गर्म चीजो से लपेटा जाये।
  • प्रमस्तिष्क में भारीपन होता है और मरीज बदसलूकी और घृणात्मक तरीके से बातचीत करता है।
  • सिर पर सूखी दाद (रूसी) फैली हुई होती है । खोपड़ी पर सफेद, पपड़ीदार, छिलने वाले दाने, माथे, कनपटियों, कानों और गर्दन तक फैले हुए होते है। खोपड़ी पर झुनझुनी-काटना, चुभन-खुजली, खुजलाने से आराम मिलता है।
  • पसीना की महक  शहद (मीठा) जैसा होता है।
  • जो दर्द एकदम से बढ़ जाता है और एकदम से कम हो जाता है उसमे बहत ज्यादा कारगर है, उसमे बेलाडोना नामक दवा भी बहुत लाभदायक है।

आंखें से सम्बंधित रोगों में फायदेमंद

  • रात में सोते समय पलके चिपक जाती है और सूजकर पपडीदार हो जाती है।  पलकों की सूजन ऊपर से  कठोर और अन्दर से नर्म होता है।
  • मरीज आंख को गर्माहट से ढंक कर रखना चाहता है  जब खुला होता है तो तुरंत दर्द होता है, और ऐसा लगता है जैसे ठंडी हवा आंख के माध्यम से सिर से बाहर निकल रही हो।
  • रोते समय ( विशेष रूप से खुली हवा में) आँसू नहीं बहते, बल्कि आँख में सूखापन रहता हैं।
  • आँख के सफेद भाग लाल हो जाते है और उनमे सूक्ष्म सुजन आ जाती है ।
  • आँखों में कमजोरी जैसे अस्पष्ट दृष्टि हो जाती है। छोटे, काले धब्बे आँखों के सामने तैरते हैं और दोहरी दृष्टि भी हो जाती है
  • अँधेरे में ऐसा लगता है मानो चमकीली रोशनी या चिंगारी आँख के पास गिर रही हो, दिन के समय और उजाले में ऐसा लगता है जैसे काली बूँदें नीचे गिर रही हों। वस्तुएँ छोटी दिखाई देती हैं (दाहिनी आँख के सामने)।

कान

  • कान में उबलते पानी जैसा शोर सुनाई देता है।  
  • खाना निगलने पर कान में चुरचुराहट होता है। सनसनी ऐसा होता है मानो भीतरी कान सूज गया हो ।
  • दाहिने कान से मवाद का रिसाव होता है जिसमे सड़े हुए मांस की तरह महक आती है।

नाक के रोगों को दूर करता है

  • नाक लाल और गर्म हो जाता है और नाक पर लाल दाने  कभी-कभी नमी होने लगती है।
  • नाक से बड़ी मात्रा में गाढ़ा- हरा बलगम निकलता है जिसमे मवाद और खून के साथ मिश्रित होता है। बाद में बलगम के साथ सूखी, भूरी शल्क सामने के साइनस से आती है और नासिका के सूजे हुए ऊपरी हिस्से से मजबूती से चिपक जाती है।
  • नासिका के भीतर छाले पड़ जाते है और नाक गुहाओं में सूखापन हो जाता है।
  • नासिका में दर्दनाक पपड़ी  और पीछे के नारों में बलगम का जमा होना भी लक्षण दीखता है
  • नाक के गुहाओ में  सूजन और जकड़न तथा  नाक पर मस्से भी हो सकते है ।
  • मछली की नमकीन या किण्वन बियर जैसी  नाक में गंध आती है।
  • खुली हवा में धाराप्रवाह जुकाम  और कमरे में सूखा जुकाम होता है ।

चेहरा से सम्बंधित रोगों लाभकारी

  • रोगी का चेहरा चिकना हो जाता है मानो जैसे पूरा तेल लगा रखा हो
  • पूरे चेहरे पर गर्मी के कारण लालिमा हो जाती है। चेहरे की त्वचा लाल-गर्म होने के कारण धोते समय यह दर्दीला और कच्चा लगता है और छिला हुआ महसूस होता है।
  • चेहरे पर हल्के-भूरे रंग के धब्बे (झाईयां)  पड़ जाती है और चेहरे पर दाने हो जाते है ।
  • temporal arteries में सुजन हो जाता है।
  • चेहरे का दर्द :- कान के पास बाईं गाल की हड्डी में उत्पन्न, दांतों के माध्यम से नाक तक, आँखों के माध्यम से सिर में कनपटी तक पहुँच जाता है।
  • दर्दनाक धब्बे आग की तरह जलते हैं, और सूरज की किरणों के प्रति बहुत संवेदनशील होते हैं। चेहरे का पसीना, खासकर उस तरफ जिस तरफ वह नहीं लेटता (सोता) है।  

मुंह और गला के बहुत से रोगों को ठीक करता है

  • होठों के अंदर कि तरफ मुंह के कोनों पर सफेद छाले तथा होंठ पीले और सूजे जाते है।
  • दाँतों की जड़ें खुरदरी हो जाती हैं या दांत बगल से टेढ़े-मेढ़े हो जाते हैं लेकिन दाँत का मुकुट ठीक रहता है। दाँत उखड़ जाते हैं और गंदे-पीले दाँत दिखने लगते है।
  • दांतों कि जड़ो के पास बगल में सफेद फफोले पड़ जाते  है और मसूड़े सूजे हुए तथा उन पर गहरे-लाल रंग की धारियाँ हो जाती हैं।
  • चाय पीने से दाँत में दर्द होने लगता है।
  • जीभ के नीचे नीली सूजन हो जाती है जीभ सूजी हुई (विशेष रूप से दाहिनी ओर चौड़ी) रोगी बार-बार खुद को जीभ पर काटता है। जीभ और मुंह पर वैरिकाज़ नसें दिखने लगती है।
  • गले में बड़ी मात्रा में बलगम का जमा होना, जिसे कठिनाई से ऊपर उठाया जाता है।  गला कच्चा, सूखा महसूस होता है, जैसे कि यह निगलते समय संकुचित हो।
  • भोजन का स्वाद ऐसा लगता है जैसे यह पर्याप्त नमक नहीं था। रोटी का स्वाद कड़वा और सूखा होता है। ठंडे खाने-पीने की इच्छा होती है।
  • भोजन चबाते समय कम लार बनने के कारण बहुत शुष्क हो जाता है।

पेट और अमाशय से सम्बंधित अनेक रोगों में लाभकारी

  • रोगी को भूख पूरी तरह से नहीं लगता है।  खाने के बाद पेट फूलने लगता है और दर्द होने लगता है।  
  • वसा वाली चीजों और प्याज खाने  से बुरा प्रभाव होता है और बांसी डकारे आने लगती है। विशेष रूप से रात में और सुबह जल्दी उठते समय तीव्र प्यास लगती है ।
  • सुबह मुँह में सड़े हुए अण्डों का स्वाद खाना, खाते समय हवा का लगातार डकार आना, बलगम या चिकना पदार्थ की उल्टी होना, पेट का सख्त होना, ये सब लक्षण भी दिखते है।  
  • चाय पिने से बदहजमी होने लगती है।
  • पेट का ऊपरी हिस्सा अंदर खींचा हुआ, नाभि का दर्द,  आंतों का अंतर्ग्रहण, पेट पर पीले या भूरे रंग के धब्बे, पेट फूलना, ये सब लक्षण भी सामान्य होते है।
  • वंक्षण ग्रंथियों की दर्दनाक सूजन
  • पेप्टिक अल्सर मेबहुत लाभकारी होता है।

श्वसन अंग कि कमियों को दूर करता है

  • दोपहर में सूखी और कँटीली खाँसी होती है, जिसमे पेट में दर्द होता है।
  • श्वासनली में बलगम होने के कारण सांस लेने में तकलीफ होता है ।
  • ऊपरी पेट के हाइपोकॉन्ड्रिया में पूर्णता और कसना से सांस लेने में तकलीफ।
  • खाँसी सिर्फ दिन में या सुबह उठने के बाद और शाम को लेटने के बाद होता है। शाम को लेटने के बाद खाँसी, बलगम ढीला हो जाता है; जब वह बायीं ओर से दायीं ओर मुड़ता है तो आसान होता है।
  • सुबह उठने पर हृदय की घबराहट भरी धड़कन। स्वरयंत्र का पैपिलोमा। जीर्ण स्वरयंत्रशोथ। हंसली पर त्वचा का नीला रंग इत्यादि ।
  • बच्चों में अस्थमा कि बीमारी हो जाती है। (इसके साथ Natrum sulph का प्रयोग किया जाता है )
  • ठंडे पेय पिने से छाती में चिलकन होने लगता है।

हाथ-पैर कि बीमारियों को ठीक करता है

  • अंगुलियों के सिरे सूजकर लाल हो जाते है। उंगलियों के सिरों में विसर्प सूजन के साथ उनमें झुनझुनी होने लगती है।
  • नाखून उखड़ जाते हैं, रंग उड़ जाता है। नाखून भंगुर। पैर के अंगूठे का नाखून बढ़ना
  • दाद:- हाथ के पिछले हिस्से पर भूरा रंग। हाथ के पीछे और उंगली पर सफेद पपड़ीदार दाद। कोहनी पर दाद।
  • बाहों और जोड़ों में चुभने वाला दर्द।
  • कूल्हे का जोड़ ऐसा महसूस होता है जैसे कि वह शिथिल हो गया हो। चलते समय अंगों को ऐसा महसूस होता है जैसे वे लकड़ी के बने हों।
  • हाथों पर ठंडा पसीना। पैर के तलवो में ज्यादा पसीना
  • बीयर, वसायुक्त भोजन, अम्ल, मिठाई, तम्बाकू, चाय, शराब और प्याज से बुरे प्रभाव दिखते है। सल्फर और मरकरी के दुरुपयोग से अंगों और जोड़ों में चिलकन होने लगता है।

नींद न आने कि समस्या को ठीक करता है

  • निरंतर नींद न आना, जिस अंग पर लेटा हो उसमें दर्द होने लगता है।
  • नींद न आना, आँखें बंद करते ही आभास के साथ जैसे ही वह उन्हें खोलता है वे गायब हो जाते हैं।
  • गरमी और बेचैनी के कारण देर से सोता है। बायीं करवट लेटने पर चिंताजनक स्वप्नं आते है।

चर्म से सम्बंधित रोगों में बहुत लाभकारी है

  • छाले, सफेद, पपड़ीदार, सूखा, चूर्णी, दाद, चेचक, चपटे छाले, नीले-सफ़ेद तल वाले।
  • केवल ढके हुए हिस्सों पर ही फुंसियां होती है जो खरोंच के बाद विस्फोट हिंसक रूप से जलते हैं।
  • साइकोटिक एक्सर्सेंस, पुराने पनीर की तरह महक, या मछली की नमकीन की तरह।
  •  हाथों और भुजाओं पर भूरे धब्बे। सूखी त्वचा, भूरे धब्बों के साथ। त्वचा का गंदा-भूरा रंग। झुर्रियां और धब्बे। त्वचा पर भूरे, या भूरे-लाल, या भूरे-सफेद धब्बे। 
  • पोलिपी, ट्यूबरकल, मौसा एपिथीलियोमा, नेवी, कार्बनकल्स, अल्सर इत्यादि ये रोग विशेष रूप से गुदा-जननांग क्षेत्र में होते है।

ज्वर मे भी अच्छे परिणाम देता है

  • शीत, जाँघों से प्रारम्भ । 
  • सोते समय केवल खुले अंगों पर या सिर को छोड़कर पूरे शरीर में पसीना आना और इसकी महक  विपुल, खट्टा, शहद की तरह होती है । 
  • शाम को रक्त का तृप्ति, रक्तवाहिनियों में थरथराहट के साथ ।

रोगों के बढ़ने और घटने का कारण

बढ़ने का कारण

शाम और रात में बढ़ना,  कुछ शिकायतें सुबह 3 बजे और दोपहर 3 बजे बढ़ जाती हैं, ठंडे गीले से; बिस्तर की गर्मी से।

रोगों में सुधार का कारण

 गर्म गीले से; डकार आने से; जुकाम के विकास से, छींकने से  और बाएँ से दाएँ मुड़ने से।

Thuja 30 uses in Hindi

सबसे पहले Thuja 30 CH (POTENCY) का  प्रयोग करना चाहिए, अगर नहीं आराम मिले तो Thuja 200 CH का उपयोग कर सकते है।

Thuja 30 CH या Thuja 200 CH – इसे दिन में 3  बार 2 बूंद  उपयोग किया जाता है।

Thuja 200 uses in Hindi

अगर ज्यादा प्रयोग करना है तो किसी चिकित्सक से परामर्श ले लेना चाहिए।

Thuja Occidentalis 200 Uses in Hindi

होमियोपैथी में 30 CH, 200 CH, 1M, 10M इत्यादि ये सब दवा कि पोटेंसी अर्थात पॉवर होती है।

अगर किसी मरीज को Thuja 30 CH का प्रभाव नहीं होता है तो वह  Thuja 200  CH का प्रयोग कर सकता है। परन्तु बेहतर यही होता है कि पहले आप कम पोटेंसी में दवा का इस्तेमाल करें।

Thuja Q uses in Hindi

अगर आपको इस दवा से मिलते जुलते लक्षण बहुत दिनों से है या आपकी बीमारी बहुत दिनों से है तो आपको Thuja के मदर टिंचर अर्थात Thuja Q का प्रयोग कर सकते है, क्योकि असाध्य रोगों के इलाज में किसी भी दवा के मदर टिंचर का इस्तेमाल ज्यादा होता है।

Source :-

  1. Materia Medica by Adolf zur Lippe, The Materia Medica by Adolf zur Lippe was written in 1854.
  2. Materia Medica by William Boericke, The Materia Medica by William Boericke was written in 1901

Disclaimer :- Thuja 200 uses in hindi– इस लेख में बताई गयी औषधियों, विधियों, और तरीको के सत्यता कि पुष्टि jivanjio.com नहीं करता है, यह लेख बस जानकारी के लिए है।

होमियोपैथिक थूजा दवा का क्या काम है ?

यह औषधि मुख्य रूप से चर्म, रक्त,आमाशय, आंत, किडनी और मष्तिष्क से सम्बन्धी रोगों लाभ देती है और इसका सबसे ज्यादा प्रयोग शरीर में कही भी मांस बढ़ने पर (Unwanted Growth) जैसे मस्सा, गिलट, तिल, ट्यूमर इत्यादि में किया जाता है

थूजा 200 ch का प्रयोग किसके लिए किया जाता है ?

इसका सबसे ज्यादा प्रयोग शरीर में कही भी मांस बढ़ने पर (Unwanted Growth) जैसे मस्सा, गिलट, तिल, ट्यूमर इत्यादि में किया जाता है

क्या थूजा दवा मस्सो को दूर का सकता है ?

हा थूजा दवा मस्सो को दूर कर सकता है,पर चिकित्सक कि देखरेख में इसका इस्तेमाल करे तो और अच्छा रिजल्ट मिलता है

मस्से के लिए सबसे अच्छी दवा कौन सी है ?

मस्से को ठीक करने के लिए सबसे बेस्ट दवा है:- थूजा

Similar Posts

प्रातिक्रिया दे

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *